आरोह-अवरोह
आरोह : (सा से सा') अर्थात मध्य सप्तक के सा से
तार सप्तक के सा तक चढाने की क्रिया का नाम है आरोह।
अवरोह : सा' से सा अर्थात तार सप्तक से मध्य सप्तक के सा तक उतरने का नाम है अवरोह।
अवरोह : सा' से सा अर्थात तार सप्तक से मध्य सप्तक के सा तक उतरने का नाम है अवरोह।
स्वरों की ऐसी मधुर तथा आकर्षक ध्वनि जो
सुनिश्चित् आरोह-अवरोह, जाति, समय, वर्ण, वादी-संवादी, मुख्य-अंग आदि नियमों से
बद्घ हो और जो वायुमंडल पर अपना प्रभाव अंकित करने मे समर्थ हो। वातावरण पर प्रभाव
डालने के लिये राग मे गायन, वादन के अविभाज्य 8 अंगों का प्रयोग होना
चाहिये।
ये 8 अंग या अष्टांग इस प्रकार
हैं: स्वर, गीत, ताल और लय, आलाप, तान, मींड, गमक एवं बोलआलाप और बोलतान। उपर्युक्त 8 अंगों के समुचित प्रयोग के द्वारा ही राग को सजाया जाता है।
राग स्वरूप अपने विशेष प्रकार के आरोह-अवरोह के
क्रम में रहता है। जिस राग में सातों स्वर सा रे ग
म प ध नि हों उसे सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति कहते हैं। इसी
प्रकार 6 स्वरों के क्रम को षाढव। 5 स्वरों के क्रम को औढव और 4 स्वरों को सुरतर कहते हैं।
ध्यान में रखें कि आरोह में जितने स्वर लगेंगे उससे कहीं अधिक या कम से कम आरोह के
बराबर स्वर अवरोह में
आने चाहिये। आरोह की
अपेक्षा अवरोह में कम स्वर भारतीय संगीत में नहीं लिये जाते कारण वह नितान्त
अस्वाभाविक बात है। इस प्रकार जातियों के कुल 10 प्रकार बनते हैं -
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सम्पूर्ण - सम्पूर्ण
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षाढव - सम्पूर्ण
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षाढव - षाढव
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औढव - सम्पूर्ण
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औढव - षाढव
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औढव - औढव
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सुरतर - सम्पूर्ण
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सुरतर - षाढव
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सुरतर - औढव
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सुरतर - सुरतर
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