Sunday, October 29, 2017

सुर की समझ

सुर की समझ गायकी के लिए बहुत जरूरी है. आईये हम सुर की प्राथमिक जानकारी हासिल करते हैं.

स्वर
आवाज़ की एक निर्धारित तेजी और चढ़ाव को स्वर बोलते हैं. स्वर को आम बोलचाल की भाषा में सुर भी कहते हैं.

सप्तक
संगीत में सबसे पहली बात हम सीखते है कि संगीत में कुल सात सुर होते हैं. ये सात सुर सब तरह के संगीत के लिए, चाहे गाने के लिए या बजाने के लिए, सबसे बुनियादी इकाई हैं. इन सात सुरों को तरह तरह के क्रम में लगा कर राग बनते हैं. सात सुरों के इस समूह को सप्तक कहते हैं. सात सुर ये हैं: 

  1. स -  षडज
  2. रे - ऋषभ
  3. ग - गंधार
  4. म - मध्यम
  5. प - पंचम
  6. ध - धैवत 
  7. नी - निषाद
रे स्वर स से ज्यादा तीव्र है. इसी तरह से ग स्वर रे से ज्यादा तीव्र है. तीव्रता का मतलब यहाँ आवाज़ में जोर या ताक़तवर होने से नहीं है.  तीव्र का मतलब हुआ आवाज़ ज्यादा चढ़ी हुई, ऊंची frequency की या फिर जिसे ऊँची pitch की आवाज़ भी कहते हैं. तो इस तरह से सप्तक में स से लेकर नी तक स्वर तीव्रता में लगातार बढ़ते जाते हैं जब की आवाज़ की ताक़त सारे सुरों में एक समान ही रहनी चाहिए. किसी स्वर में कम किसी में ज्यादा ताकत नहीं लगनी चाहिए. एक बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्यूंकि बिना तैयार किये गले में ज्यादातर चढ़े हुए सुर जैसे पंचम, धैवत या फिर निषाद गाने में बहुत ज्यादा ताकत लगती है जबकी एक अभ्यास किये हुए तैयार गले में सारे सुर एक ही जैसी ताक़त लगा के निकल आते है.

ऐसा माना जाता है की हर एक स्वर किसी एक प्राणी की आवाज से संबद्धित है और हर स्वर का एक मायने भी है. हिन्दुस्तानी पद्धति में स्वरों को मानव शरीर के 7 चक्रों से भी जोड़ा जाता है. जानकारी के लिए ये सम्बन्ध नीचे प्रस्तुत हैं लेकिन इस विषय में ज्यादा गहराई में फिलहाल नहीं जायेंगे. 

 स्वर प्राणी चक्र
  मोर / मयूर मूलाधार
 रे बैल स्वाधिष्ठान
 ग बकरी मणिपूर
  कबूतर अनाहत
  कोयल विशुद्ध
  घोड़ा / अश्व आज्ञा
 नी हाथी सहस्रार




आरोह और अवरोह

लगातार बढ़ते हुए सुर में गाने को 'आरोह' कहते है. आरोह मतलब चढ़ना. ठीक इसी तरह से अगर आप नी से शुरू करके उल्टा स पे आते हैं तो उसे 'अवरोह' कहते हैं. अवरोह यानी की उतरना.
आरोह: स --> रे --> ग --> म --> प --> ध --> नी
अवरोह: नी --> ध --> प --> म --> ग --> रे --> स 


सप्तकों के प्रकार
सप्तक में स से लेकर नी तक एक निश्चित क्रम में तीव्रता बढ़ती जाती है. इसी क्रम में अगर स से और नीचे सुर लगायें या फिर नी से और ऊपर सुर लगायें तो? ऐसे करने पर आपका सुर एक सप्तक से दूसरे सप्तक में चला जाता है. तो मुख्यतः तीव्रता के आधार पे सप्तक चार प्रकार के होते हैं: 

  1. खर्ज सप्तक,
  2. मंद्र सप्तक,
  3. मध्य सप्तक और
  4. तार सप्तक.  
खर्ज सप्तक के सुर सबसे नीची तीव्रता या फिर frequency के होते हैं. ये सुनने में बहुत भारी लगते हैं. खर्ज सप्तक के नी के बाद तीव्रता और बढ़ने  पर अगले सप्तक यानी कि मंद्र सप्तक का स लग जायेगा. इसी प्रकार से मंद सप्तक के नी के आगे तीव्रता बढ़ने पर मध्य सप्तक आ जायेगा स से लेकर नी तक. तार सप्तक के सुर सबसे तीव्र होते हैं और सुनने में बहुत चढ़े हुए या पतले लगते हैं. 

समझने के हिसाब से एक बहुत महत्वपूर्ण बात ये है कि हर सप्तक में वही सात सुर हैं, बस उनकी तीव्रता अलग अलग है. तो खर्ज सप्तक का स, मंद्र सप्तक का स, मध्य सप्तक का स और तार सप्तक का स, सारे ही षडज स्वर हैं.  अगर कोई भी दो सप्तक के षडज स्वर आप एक साथ बजाएं, हारमोनियम या फिर सितार पे तो आप को गूंजता हुआ साफ़ अनुनाद या जिसे resonance कहते है वो महसूस होगा. जरा भी आप कोई एक सप्तक का स्वर बदल दें, रे या ग कर दे, वो गूँज नहीं सुनाई देगी और पता चल जायेगा कि अलग अलग सुर बज रहे हैं. 


शुद्ध, कोमल और तीव्र स्वर
अभी जो हमने सात सुरों की बात की वो स्वर शुद्ध कहे जाते हैं. अब इन सात सुरों में से चार सुर ऐसे है जिनके अपनी निर्धारित तीव्रता / pitch से थोड़ी कम तीव्रता वाले स्वरुप भी है (जिसे कोमल स्वर कहते हैं) और सिर्फ एक सुर ऐसा है जिसका अपनी निर्धारित तीव्रता से थोड़ी अधिक तीव्रता वाला स्वरुप है (जिसे तीव्र स्वर कहते हैं). बाकी बचे दो सुरों का सिर्फ शुद्ध स्वरुप हैं, कोई कोमल या तीव्र स्वरुप नहीं है.

शुद्ध, कोमल और तीव्र स्वरों की याद रखने के लिए संक्षेप में जानकारी नीचे प्रस्तुत है. 

शुद्ध स्वर कोमल स्वरुप तीव्र स्वरुप
 स x x
 रे  x
 ग  x
 मx
 प x x
 ध  x
 नी  x

तो इस तरह से जैसा की नीचे दिखाया गया है, सारे शुद्ध, कोमल और तीव्र स्वरुप मिलाकर एक सप्तक की सीमा में बारह (12) स्वर गाये जा सकते है.   

 रे कोमल रे शुद्ध ग कोमल ग शुद्ध म शुद्ध तीव्र  ध कोमल ध शुद्ध नी कोमल नी शुद्ध

    
स्वर निरूपण संकेत (music notation legends) 
जैसे की हमने देखा कि स्वर कई प्रकार के होते हैं इसलिए यहाँ पर निम्न संकेत इस्तेमाल किये जायेंगे. सप्तक का चिह्न स्वर के अक्षर के पहले दिखाया जायेगा. शुद्ध, कोमल और तीव्र का चिह्न, स्वर के बाद दिखाया जायेगा.

 (बिना कोई निशान के): शुद्ध स्वर, मध्य सप्तक का
 ' (' का निशान स्वर के बाद): शुद्ध स्वर, तार सप्तक का' (' का निशान स्वर के पहले): शुद्ध स्वर, मंद्र सप्तक का'' (दो ' का निशान स्वर के पहले): शुद्ध स्वर, खर्ज सप्तक का
+
 (+ का निशान स्वर के बाद): तीव्र स्वर, मध्य सप्तक का
 '+ (' का और + का निशान स्वर के बाद): तीव्र स्वर, तार सप्तक का. इसी प्रकार बाकी सप्तकों के लिए निशान इस्तेमाल होंगे.
रे-
 (- का निशान स्वर के बाद): कोमल स्वर, मध्य सप्तक का
रे
 '- (' का और - का निशान स्वर के बाद): कोमल स्वर, तार सप्तक का. इसी प्रकार बाकी सप्तकों के लिए निशान इस्तेमाल होंगे. 

चल और अचल स्वर 
अचल स्वर वो स्वर होते हैं जिनका सिर्फ एक निर्धारित स्वरुप होता है जिससे ऊपर या नीचे कोई स्वर विकृति नहीं की जा सकती. जैसी हमने पाठ १ में देखा, स (षडज) और प (पंचम) दो अचल स्वर हैं जिनका तीव्र अथवा माध्यम स्वरुप नहीं होता.

चल स्वर वो होतें है जिनके शुद्ध स्वरुप को थोड़ा विकृत कर के एक भिन्न स्वरुप बनाया जा सकता है. सरगम के बाकी पांच स्वर (रे, ग, म, ध, नी) चल स्वर होतें है जिनके विकृत स्वर स्वरुप (तीव्र एवं मध्यम) प्रयोग किये जाते हैं.

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