भारतीय संगीत में संगीत शिक्षा एक कंठ से दूसरे
कंठ में ज्यों की त्यों उतारी जाती है। जिसे नायकी ढंग की शिक्षा कहते हैं। और जब
एक ही गुरू के अनेक शिष्य हो जाते हैं तो उन्हें घराना या परम्परा कहा जाता है।
किराना घराना, ग्वालियर घराना, आगरा घराना, जयपुर घराना इत्यादि घराने भारतीय संगीत में प्रसिद्ध हैं।
भारतीय शास्त्रीय संगीत श्रुतिव्यवस्था पर प्रतिष्ठित
है और अनेक राग, जैसे राग बहार आदि, हमें आज के १२ स्वरों के
प्रचलित वातावरण से श्रुतियों की ओर खींचते हैं। श्रुति का अर्थ है वह सूक्ष्म नाद
लहरी जो कि श्रवणेन्द्रिय (कान) के द्वारा सुनी जा सके। और ऐसी 22 श्रुतियां, सा से सां (मध्य सप्तक के सा से तार सप्तक के सा
तक) तक अवस्थित है।
मध्य सप्तक के आधे भाग यानि षडज, ॠषभ, गंधार व मध्यम स्वरों को पूर्वांग कहते हैं। तथा
दूसरे भाग यानि पंचम, धैवत, निषाद व तार-षडज को
उत्तरांग कहते हैं।
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