‘ध्वनि ही ईश्वर है’ – ऐसा इसलिए क्योंकि इस जीवन का आधार कंपन में है, यह कंपन ही ध्वनि है।
ध्वनि का अर्थ क्या है? योग में हम कहते हैं ‘नाद ब्रह्म’, जिसका मतलब है ‘ध्वनि ही ईश्वर है’। ऐसा इसलिए क्योंकि इस जीवन का आधार कंपन में है, यह कंपन ही ध्वनि है। इसे हर इंसान महसूस कर सकता है। अगर आप अपने भीतर ही भीतर एक खास अवस्था में पहुंच जाएं तो पूरा जगत ध्वनि हो जाता है। यह संगीत इसी तरह के अनुभव और समझ से विकसित हुआ। अगर आप ऐसे लोगों को गौर से देखेंगे जो शास्त्रीय संगीत से गहराई से जुड़े हैं, तो आपको लगेगा कि वे स्वाभाविक रूप से ही ध्यान की अवस्था में रहते हैं। वे संतों जैसे हो जाते हैं। इसलिए इस संगीत को महज मनोरंजन के साधन के तौर पर ही नहीं देखा गया, बल्कि यह आध्यात्मिक प्रक्रिया के लिए एक साधन की तरह था। रागों का प्रयोग इंसान की समझ और अनुभव को ज्यादा उन्नत बनाने के लिए किया गया।
संगीत के क्षेत्र में शुरुआत करने के लिए आपको शास्त्रीय संगीत पर नए प्रकाशनों की मदद लेनी चाहिए। इन संगीतों में थोड़ा फेरबदल किया गया है, और उन्हें एक ख़ास तरह से बनाया गया है। इसके कारण जिस शख्स के पास संगीत की जरा भी ट्रेनिंग नहीं है, वह भी इसका मूल्य समझ सकता है। उदाहरण के लिए म्यूजिक टुडे सीरीज में सुबह, दोपहर, शाम और रात के समय गाए जाने वाले रागों का संकलन है। कई जाने-माने संगीतकारों और बड़े कलाकारों के संगीत के संकलनों को भी आप खरीद सकते हैं। इनमें से कई कलाकार तो हमारे यहां योग केंद्र में भी आ चुके हैं। ईशा योग केंद्र पर साल में दो बार हम संगीत कार्यक्रम का भी आयोजन करते हैं। इसका मकसद लोगों को संगीत की बारीकियों से परिचित करना होता है।
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