Friday, February 9, 2018

सरगम का जबरन रियाज बिगाड़ रहा बच्चों की आवाज


रियलिटी शो के आडीशन में हिट होने की कोशिश में बच्चों से अभिभावकों और आयोजकों द्वारा करवाया जा रहा जबरन रियाज काफी नुकसानदेह साबित हो रहा है। इससे उनकी आवाज खराब हो रही है। ईएनटी के डॉक्टरों का कहना है कि चंडीगढ़ के रीजन में बच्चों का गला खराब होने के जो केस आ रहे हैं, उनमें हर तीसरे केस के पीछे यही वजह है। ज्यादा और ऊंचे सुर में किए गए लंबे रियाज की वजह से बच्चों के वोकल कार्ड में दिक्कत पैदा हो जाती है। 

म्यूजिक रियलिटी शो में जज की भूमिका निभाने वाली प्रसिद्ध हस्तियां भी यंगस्टर्स और बच्चों में आने वाली इस समस्या को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। उनका कहना है कि प्रतियोगी प्रभाव पैदा करने के लिए तेज स्वर अपनाते हैं। हर पांच में से तीन बच्चे ऐसा ही कर रहे हैं। इस वजह से यह समस्या बढ़ रही है।
 
रियाज नहीं उसका ढंग गलत
सेक्टर-16 स्थिति जीएमएसएच के हेड आफ डिपार्टमेंट (ईएनटी) डॉ. विजय कुमार के अनुसार, ज्यादा तेज चिल्लाने या फिर तेज आवाज में रियाज की वजह से वोकल कार्ड पर जोर पड़ता है। कई बार तो वोकल कार्ड पर नोड्यूल (मांस का थक्का) आ जाता है। इस वजह से आवाज भारी हो जाती है। अगर आप फेरी वालों की आवाज को देखें तो उनकी आवाज वोकल कार्ड पर नोड्यूल की वजह से ही बिगड़ी हुई होती है। 

जीएमएसएच के पूर्व हेड ऑफ डिपार्टमेंट (ईएनटी) डॉ. बीआर जैन का कहना है कि रियाज गलत नहीं होता, उसको करने का ढंग गलत होता है। छोटे बच्चों की वोकल कार्ड कोमल होती है और तेज रियाज की वजह से इसके डैमेज होने का खतरा ज्यादा होता है।  

बरतें सावधानियां
-रियाज लगातार नहीं करें। 
-पांच से सात मिनट का ब्रेक लें। 
-रियाज के बाद कम और धीमी आवाज में बोलें। 
-ऊंचे सुर में रियाज करने से बचें।

रियलिटी शो में अक्सर ऐसे बच्चे आते हैं जिनकी आवाज रियाज की वजह से खराब हो चुकी है। ये बच्चे ऊंचे सुर में रियाज करते हैं। रियाज तो ठीक है लेकिन उसका तरीका गलत अपना लेते हैं। रियाज का सही तरीका है कि उसको हमेशा निचले सुर में करें और लगातार रियाज न करें। बीच-बीच में ब्रेक भी लें। 
-शंकर महादेवन, बालीवुड म्यूजिक कंपोजर

बच्चों के साथ आवाज बिगड़ने की समस्या का प्रमुख कारण रियाज ज्यादा करना है। बच्चों की उम्र कम होती है और उन पर अभिभावकों की ओर से बेस्ट परफारमेंस देने का दबाव भी होता है। बच्चे की आवाज रियाज से खराब न हो इसका ध्यान रखना अभिभावकों का काम है। 
-कमाल खान, गायक 

Wednesday, February 7, 2018

संगीत की गहराई में उतरने के लिए रियाज है जरूरी...

म्यूजिक का हमारे जीवन में बहुत महत्व है. म्यूजिक ही है जिसने आज 'द वर्ल्ड म्यूजिक डे' पर संगीत जगत से जुड़ी तमाम बड़ी हस्तियों, शफकत अमानत अली, शान, कविता कृष्णमूर्ती, डॉ. एल सुब्रमण्यम, जसबीर जस्सी, मामे खान और पीट लोकेट जैसे दिग्गज सितारों को साथ लाने का काम किया है. अपनी सफलता का श्रेय ये सितारे रियाज को देते हैं और इसी बारे में हमें यहां अवगत करवा रहे हैं.
 रियाज क्यों है जरूरी
जो भी व्यक्ति वोकल म्यूजिक, इंस्ट्रूमेंट, परफॉर्मेंस आदि से जुड़ा है, उसे अपनी प्रतिभा को और निखारने के लिए हर दिन प्रैक्टिस यानी अभ्यास करना जरूरी हैं. इसे ही रियाज कहते हैं. जो भी लोग जीवन में संगीत के क्षेत्र में अपना लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं, उनके लिए प्रैक्टिस करना बहुत जरूरी है. हर रोज रियाज करना न सिर्फ आपकी आवाज को लय में लाता है बल्कि सुर-ताल का उतार-चढ़ाव भी ठीक करता है.
 सुबह का रियाज
अगर कोई व्यक्ति रोज सुबह बेसिक नोट्स की प्रैक्टिस करता है तो इससे उसके संगीत का आधार मजबूत होगा.
 स्टैंडिग नोट्स पर रियाज
एक सिंगल नोट पर रहते हुए एक सांस में रियाज करने या फिर होंठ बंद करके गले से आवाज निकालने से आपकी टोनल क्वालिटी मजबूत होती है. दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि इससे गला खुलता है. वहीं, लो नोट्स का रियाज भी हर स्तर से आवाज में लचीलापन लाने में सहायक होता है.
रियाज टेक्नीक
एक निश्चित ट्यून के साथ गाकर भी आवाज की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है. एक ट्यून में प्रैक्टिस करने से आपकी आवाज का टेक्सचर, क्वालिटी और मॉड्यूलेशन भी सुधरता है. वहीं, ऊँ की प्रैक्टिस करना मन और दिमाग को शांत करता है. इतना ही नहीं, अगर आप किसी वाद्य के साथ रियाज करते हैं तो आपकी आवाज में एक ठहराव भी आता है. वहीं दिग्गज गायकों को सुनना भी अपने आप में एक रियाज से कम नहीं है.

मेंटर की अहमियत 
एक मेंटर आपकी कमी और आपकी ताकत को पहचान कर लक्ष्य हासिल कराने में मदद करता है. मेंटर वह होता है, जो बड़ी ही ईमानदारी से आपको आपकी कमियां बताए ताकि आप इनको सुधार कर संगीत की दुनिया में अपना एक मुकाम बना सकें. 

 

Tuesday, January 30, 2018

धमार

धमार का जन्म ब्रज भूमि के लोक संगीत में हुआ। इसका प्रचलन ब्रज के क्षेत्र में लोक- गीत के रूप में बहुत काल से चला आता है। इस लोकगीत में वर्ण्य- विषय राधा- कृष्ण के होली खेलने का था। रस शृंगार था और भाषा थी ब्रज। ग्रामों के उन्मूक्त वातावरण में द्रुत गति के दीपचंदी, धुमाली और कभी अद्धा जैसी ताल में युवक- युवतियों, प्रौढ़ और वृद्धों, सभी के द्वारा यह लोकगीत गाए और नाचे जाते थे। ब्रज के संपूर्ण क्षेत्र में रसिया और होली जन-जन में व्याप्त है। पंद्रहवीं शताब्दी के अंत और सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ में उस समय के संगीत परिदृश्य को देखते हुए मानसिंह तोमर और नायक बैजू ने धमार गायकी की नींव डाली। उन्होंने होरी नामक लोकगीत ब्रज का लिया और उसको ज्ञान की अग्नि में तपाकर ढ़ाल दिया। प्राचीन चरचरी प्रबंध के सांचे में, जो चरचरी ताल में ही गाए जाते थे। होरी गायन का प्रिय ताल आदि चाचर (चरचरी) दीपचंदी बन गया। होरी की बंदिश तो पूर्ववत रही, वह विभिन्न रागों में निबद्ध कर दी गई। गायन शैली वही लोक संगीत के आधार पर पहले विलंबित अंत में द्रुत गति में पूर्वाधरित ताल से हट कर कहरवा ताल में होती है और श्रोता को रसाविभूत कर देती है। नायक बैजू ने धमारों की रचना छोटी की। इसकी गायन शैली का आधार ध्रुवपद जैसा ही रखा गया। वर्ण्य-विषय मात्र फाग से संबंधित और रस शृंगार था, वह भी संयोग। वियोग शृंगार को धमार बहुत कम स्थान प्राप्त हैं।
इस शैली का उद्देश्य ही रोमांटिक वातावरण उत्पन्न करना था। ध्रुवपद की तरह आलाप, फिर बंदिश गाई जाती थी। पद गायन के बाद लय- बाँट प्रधान उपज होती थी। विभिन्न प्रकार की लयकारियों से गायक श्रोताओं को चमत्कृत करता था। पखावजी के साथ लड़ंत होती थी। सम की लुकाछिपी की जाती थी। श्रेष्ठ कलाकार गेय पदांशों के स्वर सन्निवेशों में भी अंतर करके श्रोताओं को रसमग्न करते थे। इस प्रकार धमार का जन्म हुआ और यह गायन शैली देश भर के संगीतज्ञों में फैल गई। गत एक शताब्दी में धमार के श्रेष्ठ गायक नारायण शास्री, धर्मदास के पुत्र बहराम खाँ, पं॰ लक्ष्मणदास, गिद्धौर वाले मोहम्मद अली खाँ, आलम खाँ, आगरे के गुलाम अब्बास खाँ और उदयपुर के डागर बंधु आदि हुए हैं। ख्याल गायकों के वर्तमान घरानों में से केवल आगरे के उस्ताद फैयाज खाँ नोम-तोम से अलाप करते थे और धमार गायन करते थे। इसी प्रकार समय के साथ-साथ मृदंग और वीणा वादन में भी परिवर्तन होता गया। मृदंग और वीणा प्राचीन काल से ही अधिकांशतया गीतानुगत ही बजाई जाती थीं। मुक्त वादन भी होता था। मृदंग और वीणावादकों ने भी ध्रुवपद और धमार गायकी के अनुरुप अपने को ढाला। वीणा में ध्रुवपदानुरुप आलाप, जोड़ालाप, विलंबित लय की गतें, तान, परनें और झाला आदि बजाए गए। धमार के अनुरुप पखावजी से लय- बाँट की लड़ंत शुरु हुई। पखावजी ने भी ध्रुवपद- धमार में प्रयुक्त तालों में भी अभ्यास किया, साथ ही संगत के लिए विभिन्न तालों और लयों की परनों को रचा l

Saturday, December 9, 2017

तीन ताल

तीन ताल हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध तालों में से एक है। यह उत्तर भारत में सर्वाधिक प्रचलित है। यह लयबद्ध सरंचना का सममित स्वरूप है।

यह कुल सोलह (16) मात्राओं का ताल हैं जिसमें चार-चार मात्राओं के चार विभाग होते हैं। तीसरे विभाग में ख़ाली होती है जो नवीं मात्रा पर होती है। पहली मात्रा पर सम होता है।
इसके मूल बोल निम्नलिखित हैं:
                             धा धिन् धिन् धा। धा धिन् धिन् धा। धा तिन् तिन् ता। ता धिन् धिन् धा 

तीन ताल के कुछ टुकड़े:
धा धिं धिं धा | धा धिं धिं धा | धा तिं तिं ता | ता धिं धिं धा |
ठेका ( मात्राएँ १६, ताली ३, खाली १)
दूसरा प्रकार:

धा त्रक धिं धा | धा त्रक धिं धा | धा त्रक तिं ता | ता त्रक धिं धा |
तीसरा प्रकार:
धागे धिग धिं धा | धागे धिग धिं धा | धागे तिग तिं ता | तागे धिग धिं धा |
कायदा:
धागे त्रकिट तूना कत्ता | त्रकिट तूना कत्ता त्रकिट | तागे त्रकिट तूना कत्ता | त्रकिट तूना कत्ता त्रकिट ||
आमद:
धागे त्रकिट तूना कत्ता | त्रकिट तूना कत्ता त्रकिट | धा तूना कत्ता त्रकिट | धा तूना कत्ता त्रकिट ||
गत
1.
दीं नग किड़ नग | धागे त्रकिट दिने किने | तीं नग किड़ नक | धागे त्रकिट दिने किने ||
2.
दीं नग किड़ नग | दीं नग किड़ नक | धागे त्रकिन दिने किने | दीं नग किड़ नक || तीं नग किड़ नक | तीं नग किड़ नग | धागे त्रकिट दिने किने | दीं नग किड़ नक ||
3.
धागे तिट घिड़ नग | तागे तिट किड़ नक | धिद्ध धिद्ध धिन ता | किड़ नग धागे तिट ||
4.
धा s धिन ता | किड़ नक धागे तिट | ता s धिन ता | किड़ नक धागे तिट ||
5.
धागे तिट घिड़ नग | धागे तिट घिड़ नग | तागे तिट घिड़ नग | धागे तिट घिड़ नग ||
6.
धा किट धा कृधा | किट धागे तिट धीना | गीना त्रकिट तूना कत्ता | घिड़ा sन् नागे तिट || ता किट ता कृधा | किट तागे तिट तीना | गीना त्रकिट तूना कत्ता | किड़ा sन् नागे तिट ||
7.
धागे त्रकिट धिन धिन | धिद्ध धिद्ध धिट तिट | त्रकिट धिने धित त्रकिट | धिट धिट धागे तिट || तागे त्रकिट दिन दिन | धिद्ध धिद्ध धिट तिट | त्रकिट धिने धिट त्रकिट | धिट तिट धागे तिट ||

आमद
दीं नग किड़ नक | धागे त्रकिट दिने किने | धा त्रकिट दिने किने | धा त्रकिट दिने किने ||
तीया
तिट कत गद गिन | धाती धाती टक तग | दगि नधा तीधा तिट | कत गद गिन धाती ||

Sunday, November 26, 2017

राग यमन

प्रथम पहर निशि गाइये ग नि को कर संवाद।
जाति संपूर्ण तीवर मध्यम यमन आश्रय राग ॥
आरोह- ऩि रे ग, म॑ प, ध नि सां।
अवरोह- सां नि ध प, म॑ ग रे सा। 
पकड़- ऩि रे ग रे, प रे, ऩि रे सा।
राग का परिचय -1) इस राग को राग कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से होती है अत: इसे आश्रय राग भी कहा जाता है (जब किसी राग की उत्पत्ति उसी नाम के थाट से हो)। मुगल शासन काल के दौरान, मुसलमानों ने इस राग को राग यमन अथवा राग इमन कहना शुरु किया।
2) इस राग की विशेषता है कि इसमें तीव्र मध्यम का प्रयोग किया जाता है। बाक़ी सभी स्वर शुद्ध लगते हैं।
3) इस राग को रात्रि के प्रथम प्रहर या संध्या समय गाया-बजाया जाता है। इसके आरोह और अवरोह में सभी स्वर प्रयुक्त होते हैं, अत: इसकी जाति हुई संपूर्ण-संपूर्ण (परिभाषा देखें)।
4) वादी स्वर है- ग संवादी - नि
विशेषतायें-
१) यमन और कल्याण भले ही एक राग हों मगर यमन और कल्याण दोनों के नाम को मिला देने से एक और राग की उत्पत्ति होती है जिसे राग यमन-कल्याण कहते हैं जिसमें दोनों मध्यम का प्रयोग होता है।
२) यमन को मंद्र सप्तक के नि से गाने-बजाने का चलन है। ऩि रे ग, म॑ ध नि सां
३) इस राग में ऩि रे और प रे का प्रयोग बार बार किया जाता है।
४) इस राग को गंभीर प्रकृति का राग माना गया है।
५) इस राग को तीनों सप्तकों में गाया-बजाया जाता है। कई राग सिर्फ़ मन्द्र, मध्य या तार सप्तक में ज़्यादा गाये बजाये जाते हैं, जैसे राग सोहनी तार सप्तक में ज़्यादा खुलता है।

इस राग में कई मशहूर फ़िल्मी गाने भी गाये गये हैं।
  • सरस्वती चंद्र से- चंदन सा बदन, चंचल चितवन
  • राम लखन से- बड़ा दुख दीन्हा मेरे लखन ने
  • चितचोर से- जब दीप जले आना
  • भीगी रात से- दिल जो न कह सका वो ही राज़े दिल ....आदि।

Friday, November 3, 2017

राग

'राग' शब्द संस्कृत की 'रंज्' धातु से बना है। रंज् का अर्थ है रंगना। जिस तरह एक चित्रकार तस्वीर में रंग भरकर उसे सुंदर बनाता है, उसी तरह संगीतज्ञ मन और शरीर को संगीत के सुरों से रंगता ही तो हैं। रंग में रंग जाना मुहावरे का अर्थ ही है कि सब कुछ भुलाकर मगन हो जाना या लीन हो जाना। संगीत का भी यही असर होता है। जो रचना मनुष्य के मन को आनंद के रंग से रंग दे वही राग कहलाती है।
हर राग का अपना एक रूप, एक व्यक्तित्व होता है जो उसमें लगने वाले स्वरों और लय पर निर्भर करता है। किसी राग की जाति इस बात से निर्धारित होती हैं कि उसमें कितने स्वर हैं। आरोह का अर्थ है चढना और अवरोह का उतरना। संगीत में स्वरों को क्रम उनकी ऊँचाई-निचाई के आधार पर तय किया गया है। ‘सा’ से ऊँची ध्वनि ‘रे’ की, ‘रे’ से ऊँची ध्वनि ‘ग’ की और ‘नि’ की ध्वनि सबसे अधिक ऊँची होती है। जिस तरह हम एक के बाद एक सीढ़ियाँ चढ़ते हुए किसी मकान की ऊपरी मंजिल तक पहुँचते हैं उसी तरह गायक सा-रे-ग-म-प-ध-नि-सां का सफर तय करते हैं। इसी को आरोह कहते हैं। इसके विपरीत ऊपर से नीचे आने को अवरोह कहते हैं। तब स्वरों का क्रम ऊँची ध्वनि से नीची ध्वनि की ओर होता है जैसे सां-नि-ध-प-म-ग-रे-सा। आरोह-अवरोह में सातों स्वर होने पर राग ‘सम्पूर्ण जाति’ का कहलाता है। पाँच स्वर लगने पर राग ‘औडव’ और छह स्वर लगने पर ‘षाडव’ राग कहलाता है। यदि आरोह में सात और अवरोह में पाँच स्वर हैं तो राग ‘सम्पूर्ण औडव’ कहलाएगा। इस तरह कुल 9 जातियाँ तैयार हो सकती हैं जिन्हें राग की उपजातियाँ भी कहते हैं। साधारण गणित के हिसाब से देखें तो एक ‘थाट’ के सात स्वरों में 484 राग तैयार हो सकते हैं। लेकिन कुल मिलाकर कोई डे़ढ़ सौ राग ही प्रचलित हैं। मामला बहुत पेचीदा लगता है लेकिन यह केवल साधारण गणित की बात है। आरोह में 7 और अवरोह में भी 7 स्वर होने पर ‘सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति’ बनती है जिससे केवल एक ही राग बन सकता है। वहीं आरोह में 7 और अवरोग में 6 स्वर होने पर ‘सम्पूर्ण षाडव जाति’ बनती है।
कम से कम पाँच और अधिक से अधिक ७ स्वरों से मिल कर राग बनता है। राग को गाया बजाया जाता है और ये कर्णप्रिय होता है। किसी राग विशेष को विभिन्न तरह से गा-बजा कर उसके लक्षण दिखाये जाते है, जैसे आलाप कर के या कोई बंदिश या गीत उस राग विशेष के स्वरों के अनुशासन में रहकर गा के आदि।
राग का प्राचीनतम उल्लेख सामवेद में है। वैदिक काल में ज्यादा राग प्रयुक्त होते थे, किन्तु समय के साथ साथ उपयुक्त राग कम होते गये। सुगम संगीत व अर्धशास्त्रीय गायनशैली में किन्ही गिने चुने रागों व तालों का प्रयोग होता है, जबकि शास्त्रीय संगीत में रागों की भरपूर विभिन्नता पाई जाती है।
हिन्दुस्तानी पद्धति हिन्दुस्तानी संगीत व राग अपने पुरातन कर्नाटिक स्वरूप से काफी भिन्न हैं।
रागों का विभाजन मूलरूप से थाट से किया जाता है। हिन्दुस्तानी पद्धति में ३२ थाट हैं, किन्तु उनमें से केवल १० का प्रयोग होता है। कर्नाटक संगीत में ७२ थाट माने जाते हैं।
'राग' एक संस्कृत शब्द है। इसकी उत्पत्ति 'रंज' धातु से हुई है, जिसका अर्थ है - 'रंगना'। महाभारत काल में इसका अर्थ प्रेम और स्नेह आदि अर्थों में भी हुआ है।
इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग बृहद्देशी में हुआ, जहाँ इसका अर्थ "ध्वनि का कर्णप्रिय आरोह-अवरोह" बताया गया है।
'रागिनी' राग का स्त्री रूप ही समझा गया है।
राग का मूल रूप हिन्दुस्तानी संगीत के 'बिलावल ठाट' को मान गया है। इसके अंतर्गत सुर 'शुद्ध' और 'कोमल' दो भागों में विभक्त हैं।

Sunday, October 29, 2017

सुर की समझ

सुर की समझ गायकी के लिए बहुत जरूरी है. आईये हम सुर की प्राथमिक जानकारी हासिल करते हैं.

स्वर
आवाज़ की एक निर्धारित तेजी और चढ़ाव को स्वर बोलते हैं. स्वर को आम बोलचाल की भाषा में सुर भी कहते हैं.

सप्तक
संगीत में सबसे पहली बात हम सीखते है कि संगीत में कुल सात सुर होते हैं. ये सात सुर सब तरह के संगीत के लिए, चाहे गाने के लिए या बजाने के लिए, सबसे बुनियादी इकाई हैं. इन सात सुरों को तरह तरह के क्रम में लगा कर राग बनते हैं. सात सुरों के इस समूह को सप्तक कहते हैं. सात सुर ये हैं: 

  1. स -  षडज
  2. रे - ऋषभ
  3. ग - गंधार
  4. म - मध्यम
  5. प - पंचम
  6. ध - धैवत 
  7. नी - निषाद
रे स्वर स से ज्यादा तीव्र है. इसी तरह से ग स्वर रे से ज्यादा तीव्र है. तीव्रता का मतलब यहाँ आवाज़ में जोर या ताक़तवर होने से नहीं है.  तीव्र का मतलब हुआ आवाज़ ज्यादा चढ़ी हुई, ऊंची frequency की या फिर जिसे ऊँची pitch की आवाज़ भी कहते हैं. तो इस तरह से सप्तक में स से लेकर नी तक स्वर तीव्रता में लगातार बढ़ते जाते हैं जब की आवाज़ की ताक़त सारे सुरों में एक समान ही रहनी चाहिए. किसी स्वर में कम किसी में ज्यादा ताकत नहीं लगनी चाहिए. एक बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्यूंकि बिना तैयार किये गले में ज्यादातर चढ़े हुए सुर जैसे पंचम, धैवत या फिर निषाद गाने में बहुत ज्यादा ताकत लगती है जबकी एक अभ्यास किये हुए तैयार गले में सारे सुर एक ही जैसी ताक़त लगा के निकल आते है.

ऐसा माना जाता है की हर एक स्वर किसी एक प्राणी की आवाज से संबद्धित है और हर स्वर का एक मायने भी है. हिन्दुस्तानी पद्धति में स्वरों को मानव शरीर के 7 चक्रों से भी जोड़ा जाता है. जानकारी के लिए ये सम्बन्ध नीचे प्रस्तुत हैं लेकिन इस विषय में ज्यादा गहराई में फिलहाल नहीं जायेंगे. 

 स्वर प्राणी चक्र
  मोर / मयूर मूलाधार
 रे बैल स्वाधिष्ठान
 ग बकरी मणिपूर
  कबूतर अनाहत
  कोयल विशुद्ध
  घोड़ा / अश्व आज्ञा
 नी हाथी सहस्रार




आरोह और अवरोह

लगातार बढ़ते हुए सुर में गाने को 'आरोह' कहते है. आरोह मतलब चढ़ना. ठीक इसी तरह से अगर आप नी से शुरू करके उल्टा स पे आते हैं तो उसे 'अवरोह' कहते हैं. अवरोह यानी की उतरना.
आरोह: स --> रे --> ग --> म --> प --> ध --> नी
अवरोह: नी --> ध --> प --> म --> ग --> रे --> स 


सप्तकों के प्रकार
सप्तक में स से लेकर नी तक एक निश्चित क्रम में तीव्रता बढ़ती जाती है. इसी क्रम में अगर स से और नीचे सुर लगायें या फिर नी से और ऊपर सुर लगायें तो? ऐसे करने पर आपका सुर एक सप्तक से दूसरे सप्तक में चला जाता है. तो मुख्यतः तीव्रता के आधार पे सप्तक चार प्रकार के होते हैं: 

  1. खर्ज सप्तक,
  2. मंद्र सप्तक,
  3. मध्य सप्तक और
  4. तार सप्तक.  
खर्ज सप्तक के सुर सबसे नीची तीव्रता या फिर frequency के होते हैं. ये सुनने में बहुत भारी लगते हैं. खर्ज सप्तक के नी के बाद तीव्रता और बढ़ने  पर अगले सप्तक यानी कि मंद्र सप्तक का स लग जायेगा. इसी प्रकार से मंद सप्तक के नी के आगे तीव्रता बढ़ने पर मध्य सप्तक आ जायेगा स से लेकर नी तक. तार सप्तक के सुर सबसे तीव्र होते हैं और सुनने में बहुत चढ़े हुए या पतले लगते हैं. 

समझने के हिसाब से एक बहुत महत्वपूर्ण बात ये है कि हर सप्तक में वही सात सुर हैं, बस उनकी तीव्रता अलग अलग है. तो खर्ज सप्तक का स, मंद्र सप्तक का स, मध्य सप्तक का स और तार सप्तक का स, सारे ही षडज स्वर हैं.  अगर कोई भी दो सप्तक के षडज स्वर आप एक साथ बजाएं, हारमोनियम या फिर सितार पे तो आप को गूंजता हुआ साफ़ अनुनाद या जिसे resonance कहते है वो महसूस होगा. जरा भी आप कोई एक सप्तक का स्वर बदल दें, रे या ग कर दे, वो गूँज नहीं सुनाई देगी और पता चल जायेगा कि अलग अलग सुर बज रहे हैं. 


शुद्ध, कोमल और तीव्र स्वर
अभी जो हमने सात सुरों की बात की वो स्वर शुद्ध कहे जाते हैं. अब इन सात सुरों में से चार सुर ऐसे है जिनके अपनी निर्धारित तीव्रता / pitch से थोड़ी कम तीव्रता वाले स्वरुप भी है (जिसे कोमल स्वर कहते हैं) और सिर्फ एक सुर ऐसा है जिसका अपनी निर्धारित तीव्रता से थोड़ी अधिक तीव्रता वाला स्वरुप है (जिसे तीव्र स्वर कहते हैं). बाकी बचे दो सुरों का सिर्फ शुद्ध स्वरुप हैं, कोई कोमल या तीव्र स्वरुप नहीं है.

शुद्ध, कोमल और तीव्र स्वरों की याद रखने के लिए संक्षेप में जानकारी नीचे प्रस्तुत है. 

शुद्ध स्वर कोमल स्वरुप तीव्र स्वरुप
 स x x
 रे  x
 ग  x
 मx
 प x x
 ध  x
 नी  x

तो इस तरह से जैसा की नीचे दिखाया गया है, सारे शुद्ध, कोमल और तीव्र स्वरुप मिलाकर एक सप्तक की सीमा में बारह (12) स्वर गाये जा सकते है.   

 रे कोमल रे शुद्ध ग कोमल ग शुद्ध म शुद्ध तीव्र  ध कोमल ध शुद्ध नी कोमल नी शुद्ध

    
स्वर निरूपण संकेत (music notation legends) 
जैसे की हमने देखा कि स्वर कई प्रकार के होते हैं इसलिए यहाँ पर निम्न संकेत इस्तेमाल किये जायेंगे. सप्तक का चिह्न स्वर के अक्षर के पहले दिखाया जायेगा. शुद्ध, कोमल और तीव्र का चिह्न, स्वर के बाद दिखाया जायेगा.

 (बिना कोई निशान के): शुद्ध स्वर, मध्य सप्तक का
 ' (' का निशान स्वर के बाद): शुद्ध स्वर, तार सप्तक का' (' का निशान स्वर के पहले): शुद्ध स्वर, मंद्र सप्तक का'' (दो ' का निशान स्वर के पहले): शुद्ध स्वर, खर्ज सप्तक का
+
 (+ का निशान स्वर के बाद): तीव्र स्वर, मध्य सप्तक का
 '+ (' का और + का निशान स्वर के बाद): तीव्र स्वर, तार सप्तक का. इसी प्रकार बाकी सप्तकों के लिए निशान इस्तेमाल होंगे.
रे-
 (- का निशान स्वर के बाद): कोमल स्वर, मध्य सप्तक का
रे
 '- (' का और - का निशान स्वर के बाद): कोमल स्वर, तार सप्तक का. इसी प्रकार बाकी सप्तकों के लिए निशान इस्तेमाल होंगे. 

चल और अचल स्वर 
अचल स्वर वो स्वर होते हैं जिनका सिर्फ एक निर्धारित स्वरुप होता है जिससे ऊपर या नीचे कोई स्वर विकृति नहीं की जा सकती. जैसी हमने पाठ १ में देखा, स (षडज) और प (पंचम) दो अचल स्वर हैं जिनका तीव्र अथवा माध्यम स्वरुप नहीं होता.

चल स्वर वो होतें है जिनके शुद्ध स्वरुप को थोड़ा विकृत कर के एक भिन्न स्वरुप बनाया जा सकता है. सरगम के बाकी पांच स्वर (रे, ग, म, ध, नी) चल स्वर होतें है जिनके विकृत स्वर स्वरुप (तीव्र एवं मध्यम) प्रयोग किये जाते हैं.

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सरगम का जबरन रियाज बिगाड़ रहा बच्चों की आवाज

रियलिटी शो के आडीशन में हिट होने की कोशिश में बच्चों से अभिभावकों और आयोजकों द्वारा करवाया जा रहा जबरन रियाज काफी नुकसानदेह साबित हो रहा...